कुछ यूँ बेखबर रहो ,
की ना कोई खबर रहे ,
सोचो ना इतना ,ना करो इंतज़ार किसीका ,
बस चल पड़ो , यूँ ही चल पड़ो ,
क्या मिले ,क्या ना मिले ,
ना करो निर्णय तुम इसका ,
जो मिले ,चाहे जब मिले ,
बस शुभ मिले , करो विचार इश्क ,
यह जान लो ,यह मान लो ,
जीवन है मिश्रण सुख दुःख का ,
क्यों ना करे नवजीवन दर्शन इसका ,
धर्म है मेरा केवल कर्म करना ,
क्यों रखु लेखा सारे जन जन का
करलो प्रतिज्ञा मन में यह की ,
ना खाली बैठ यूँ पछताओगे ,
जो हो ,चाहे जैसे हो ,हर कर्त्तव्य अब तुम निभाओगे
चल रहे मन में है , यह द्वन्द क्यों ,
पड़ रहे पटल पर है यह अंध क्यों ,
गर चाहते हो नव जीवन को समृद्ध बनाना ,
ना इस जीवन को व्यर्थ गवाना ,
करोगे अगर ऐसा तो वापस आओगे फिर इसी में ,
तो क्यों ना करे पूर्ण इसे इसी अवधि में .