लकीरे खींच चुका था

 इशारे से उसने कही 
     कुछ देर लगी मुझे समझने में
               मैं था इस ओर 
               वो थी उस ओर
    जब उसका इशारा समझ आया 


            एक पल भी न लगा 
             अंखियो से उसकी
          अश्रुओ को छलकने में
        बहते - बहते न जाने कब से 
         खारा सागर सुख चुका था 
           मासूम चेहरे पर उसके
      तड़प की लकीरे खींच चुका था 
      होंठो पर उसके जमीं थी पपड़ी 
जुंबा भी शायद जैसे थी उसकी अकड़ी
                 केश थे बिखरे 
                वस्त्र थे फटे हुए 
           जगह - जगह से छितरे 
           अपनी थी या पराई थी
       एक पल के लिए उसने मुझसे 
        न जाने क्यों नजरे चुराई थी 
    शायद उसके लिए मैं अनजान था 
     इसलिए वो थोड़ी सी घबराई थी
      इशारे से मैंने उसे पास बुलाया 


              नजरों से मैंने उसे 
       प्रेम भाव का एहसास कराया
      मैं समझ चुका था वो भूखी थी 
       उस छोटी सी बच्ची से शायद 
         किस्मत भी जैसे रूठी थी
            एक निवाला रोटी का 
             जब उसने खाया था 
              मुझे उसकी भूख में
           मेरा सांई नजर आया था 
          भूख शांत होते ही बच्ची ने
       मुझे अपने ह्रदय से ऐसे लगाया 
जैसे मैं होऊं उसका अपना न कोई पराया


                आज समझ आया 
           भूख की तड़प क्या होती है 
           भूख में तो फूलों वाली राहें
           कांटो वाली सड़क होती है 
              नही चाहिए ईश्वर को 
             धन दौलत किसी की
       किसी भूखे की भूख मिटा देना 
              तोड़कर अपना दर्पण 
     कभी तो किसी का दर्पण सजा देना


तारीख: 21.10.2017                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









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