पहाड़

देखकर अक्सर उस पहाड़ को
उमड़ते हैं दिल में मेरे कहीं जज़्बात 
विशाल हृदय लेकर तना सा खड़ा है
अनगिनत सवाल पूछ रहा है दिल मेरा
क्या सर्दी, क्या गर्मी,लगती नहीं उसे ?


हर मौसम की मार झेलता रहता?
दर्द क्या होता, क्या नहीं जानता?
 खुशी गम के नगमे हर साल सुनता?
क्या अपनी पीरा,किसी को भी सुनाता?
माथे पर उसके आनंद की लकीरें दिखाता?


अट्टहास सा विशाल खड़ा ही रहता क्या?
कभी क्या विश्राम भी वो करता?
अक्सर दिल ये मेरा पूछता मुझसे
तेरी व्यथा और उसकी यात्रा नहीं दिखती?
खामोशी से कल आज और कल के सपने बूनता?
ना जाने किसकी आस में ये खड़ा?


इतिहास के पन्नों पर मिट जाएगा वजूद इसका?
अक्सर दिल मेरा पूछता है सवाल बार बार 
हरित लालिमा ओड़कर, सिमटता रहता
बेबसी की ठोकरें खाता ही जाता?
क्यों खड़ा है, ऐसे जैसे कोई कर रहा है तपस्या?
क्या इस सफ़र की नहीं है कोई भी मंजिल?

अक्सर दिल मेरा पूछता है सवाल बार बार।


तारीख: 12.10.2024                                    रेखा पारंगी




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