पंथ

तुम आते
कितनी बार रोज़
बस यौंही लौट जाते हो
मेरा परिचय
इतिहास नहीं
आज भी तुम संग है
पूर्ववत
मेरे शून्य मंदिर में
आज भी तुम गूंजते हो
तुम्ही मूल हो
शूल नहीं
दृग भीगते हैं
तेरी आहत से
मेरा लघुतम जीवन
रोज तुम्हें देखता है
जब तुम आते हो
प्रतिदिन प्रतिक्षण
प्रियतम
मेरा पथ आलोकित कर
 


तारीख: 13.09.2019                                    मनोज शर्मा









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