फुलमनी का मोबाइल


(१)
फुलमनी के गाँव तक अभी पक्की सड़क नहीं पहुँची है
बारिश में घुटना भर कीचड़ पार करके जाना पड़ता है स्कूल
स्कूल, जहाँ बोरे पर बैठना होता है
और मास्टर जी महीने में दस दिन ही आते हैं।

उसके पास स्कूल वाली नीली फ्रॉक के अलावा
एक और कपड़ा है, लाल रंग का, थोड़ा फटा हुआ
जिसे वो गाँव के परब (त्योहार) में पहनती है।
उसे नहीं पता कि देश का प्रधानमंत्री कौन है
और राजधानी पटना है या दिल्ली, इसमें उलझ जाती है
उसकी दुनिया अपने गाँव, पास के जंगल और
हफ़्ते में एक बार लगने वाले हाट तक ही है।


(२)
इस बार जंगल में महुआ कम हुआ था
पिता खैनी मलते हुए माँ को बता रहे थे
"इस साल फुलमनी का बियाह करना मुश्किल है
पैसा नहीं जुटेगा।"
फुलमनी सुन रही थी
उसे बियाह नहीं करना था
उसे मोबाइल चाहिए था
गाँव के ठेकेदार के मुंशी के हाथ में देखा था उसने
जिसमें तस्वीरें दिखती थीं और गाना भी बजता था।
शहर से काम करने आई दीदी ने बताया था
कि मोबाइल में पूरी दुनिया होती है।
उसे वो दुनिया देखनी थी।


(३)
उस दिन वो हाट से नमक और आलू लेकर लौट रही थी
रास्ते में मोटरसाइकिल पर तीन लड़के मिले
गाँव के ही थे, दिन भर घूमते रहते थे।
एक ने रास्ता रोककर कहा, "ए फुलमनी, कहाँ जाती है?"
वो डरी, सिर झुकाकर खड़ी रही।
दूसरे ने उसके हाथ से आलू की पोटली छीन ली
और हवा में उछालने लगा।


वो रोने लगी, "पोटली दे दो... बाबू मारेगा।"
तीसरे ने कहा, "क्यों रे, रोती क्यों है? तुझे मोबाइल चाहिए?"
फुलमनी ने चौंक कर सिर उठाया
उसकी आँखों में एक पल को उम्मीद चमकी।
लड़के ने जेब से एक पुराना सा मोबाइल निकाला,
स्क्रीन पर लकीरें थीं, पर गाना बज रहा था।


"ये ले, तेरा हुआ... बस हमारे साथ चलना होगा जंगल की तरफ,"
उसने कहा और हँसने लगा।
बाकी दोनों भी हँसे।
फुलमनी ने एक बार मोबाइल को देखा,
और फिर अपनी फटी हुई चप्पल और मैले कपड़ों को।
उसने सुना था शहर वाली दीदी से
कि लड़कों के साथ जंगल की तरफ नहीं जाते।
उसने सिर 'ना' में हिलाया, पोटली झपटी और भागने लगी।
पीछे से लड़कों की गालियाँ और हँसी की आवाज़ आ रही थी।

घर आकर वो बहुत रोई
इसलिए नहीं कि लड़कों ने उसे छेड़ा था,
बल्कि इसलिए कि वो मोबाइल उसका होते-होते रह गया।
पूरी दुनिया उसके हाथ आते-आते फिसल गई थी।
 


तारीख: 02.07.2025                                    मुसाफ़िर




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