आवाजों में ना वह ताकत अब
दौर ए तन्हाई में किसको पुकारू
कोई काज नहीं अब
जिससे हैसियत को संवारू
स्वरों की कुंठा है
क्या बात बनाऊं
क्या बात बिगाडूँ
इस मुश्किल कहानी को लिखने में
कितना वक्त और गुजारूँ
कागज की कश्तियां हैं
समंदर में इनको कैसे उतारू
कागज की कश्तियों
दूर रहना सीखो किनारो से
तुम्हें डूबना है, यही तुम्हारा प्रारब्ध है
वह दो, जिनका मिलना नामुमकिन था
एक कागज की कश्ती थी दूसरा किनारा था