प्रेम

 

एक वक़्त था जब ज़िन्दगी में प्रेम चाहिए था,
ढेर सा प्रेम... अथाह प्रेम... सिर्फ़ प्रेम।
प्रेम नियति थी... प्रेम ही सब कुछ था...
प्रेम में डूबी रहती थी।
अथाह प्रेम के बिना जैसे जीवन का कोई आधार न हो।
प्रेम की चाह ने प्रेम तो नहीं दिया,
पर अथाह पीड़ा दी।

प्रेम का होना मुझे बदलता गया,
कोमल मन न जाने कब पत्थर में बदल गया।
पहले जैसी चंचल, जीवंत, सजीव कभी मैं हुआ करती थी।
प्रेम की भूख ने आत्मा को दुर्बल कर दिया,
साँस लेने की मजबूरी ने मन से संबंध तोड़ दिया।
सारी सकारात्मक भावनाएँ,
पीड़ा के अथाह समंदर में खो गईं।

शुरू में पीड़ा के घूँट कड़वे लगते थे,
जो अंतर्मन को घायल कर देते थे।
अब बस जी भर सो लेने को,
कुछ लम्हों के आगोश में,
चाहिए नींद,
हाँ, उतनी ही गहरी नींद, जितनी गहरी पीड़ा है...


तारीख: 07.06.2025                                    Rima Ji




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