राह में ये इश्क़ किसने रखा था,
सब्र, तहज़ीब, अदब,
सब...
क्या गज़ब रखा था।
आसमां में चीजें कहां देखते हैं हम,
उसने खुद को जमीं पर रखा था।
जाने वो क्या था कि हमें भी मालूम नहीं,
जिससे भागते थे,
उसी शख्स को दिल के करीब रखा था।
आज फिर सुनी है एक गज़ल उसकी,
किसी के कदमों में जहां उसने दिल रखा था।
यक़ीनन शायर तो हम भी कहलाए जाएंगे किसी रोज़,
उसके लिए एहसासों को बाज़ार से दूर रखा था।
जबानी अल्फ़ाज़ों में ढूंढता रहा वो उल्फ़त,
हमने जिसे ग़ज़लों में सजाने का इरादा कर रखा था।।