शहीद की बेवा की व्यथा

बहुत याद आओगे तुम
क्या वापस आओगे तुम
हे महामानव, कैसी तुम अपनी पहचान छोड़ गए 
माटी का मस्तक रहे ऊंचा हमेशा
देश भक्ति का यह दीप 
देदिप्यमान छोड़ गये 
कैसे समझायेंगे इन मासूमों को
छाया चित्रों और वर्दी में 
अपनी खुशबू विद्यमान छोड़ गये 
आंखों में पानी है,धुंधली सी छवि है
भीगी हुई आंखों में,कैसे अरमान छोड़ गए
लहू के धब्बे अभी भी हैं सरहदों पर 
तुम अपने होने का वहां प्रमाण छोड़ गये
 ये आग ना बुझेगी अब कभी
 तुम चिताओं मैं अपनी मुस्कान छोड़ गये 
 अश्क़ वह जो मोती है
 सूखी आंखों में है
 अश्क़ वो जो पानी है
 गीली आंखों की कहानी है
 वो जो मुझको रुला कर गई 
 कुछ और नहीं शहीदों की बेवाओं की कहानी है


तारीख: 30.04.2025                                    प्रतीक बिसारिया




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