साँझ ठहर जा पल दो पल

साँझ ठहर जा पल दो पल
महबूब मेरा अब जावे है
पंछियों फेरो मुँह उधर
वो गरवा मोहे लगावे है

वो आये तो थे दुपहरी से
कितनी बातें उनसे करनी थी
जो भुल गया,जो कह ना सका
सब वो कहानी कहनी थी
ये रात कलुटी अब आ के
सब बात याद करावे है
साँझ ठहर जा पल दो पल
महबूब मेरा अब जावे है

फूलों जैसा हुस्न है उनका
सुरत भोली भाली है
नाज़ुकी है कलियों जैसी
कमसीनी सुबह की लाली है
वो अँजाने में वाण नयन से
दिल पर मेरे चलावे है
साँझ ठहर जा पल दो पल
महबूब मेरा अब जावे है

बादल भी ये जान बुझ कर
बरसे उसको छूवन को
ये बिजली चमके बार बार अौर
देखे भीगे चितवन को
अपने हाथों से अपने जिस्म को
देखो वो कैसे छुपावे है
साँझ ठहर जा पल दो पल
महबूब मेरा अब जावे है

जी चाहे छुपा लुँ आँखो में
कोई देख ने ना पावे उन्हें
वो बस बने हैं मेरी ख़ातिर
कोई जा के ये बतावे उन्हें
जाने हैं वो, मैं कितना चाहुँ
मगर फिर भी मुझे सतावे है
साँझ ठहर जा पल दो पल
महबूब मेरा अब जावे है
पंछियों फेरो मुँह उधर
वो गरवा मोहे लगावे है
साँझ ठहर जा पल दो पल
महबूब मेरा अब जावे है


तारीख: 03.08.2017                                    प्रमोद राजपुत









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है