सपने में बसता है सपना

सपने में बसता है सपना
पलकों के पार कोई अपना 
तस्वीरें दिखाता है नित्य नई
जैसे पानी पर परछाइयाँ कई
या मरीचिका कोई मरुस्थली में 

मनस्पटल के भूले बिसरे गली में 
फुदकते भाव जैसे चंचल हिरन
सपने में जीते हैं इक और जीवन
हर दृश्य उसका कितना जीवंत होता है 

समझता कहाँ कि सब माया है धोखा है 
आँखों के खुलते ही हुई सपनों की मौत 
एक नींद ही है उसके जीवन का स्त्रोत

कभी लगता है सिर्फ सपना है जीवन 
जन्म से मौत के सफर का वृहद् स्वपन
मृत्यु से स्वप्न भग्न होता है हमारा
निद्रा टूटती है इस मौत के द्वारा 

कुछ ज्ञात नहीं रहता उस मौत के बाद 
भूल जाते हैं सब जो अब तक था याद 
हम सिर्फ स्वप्न देखते रहते हैं 
नित्य नये प्रतिबिम्ब उभरते हैं 

हम रम जाते हैं समझते यही जीवन है 
समझो इसे जैसे एक और स्वपन है 
फिर दर्द न दे सकेगा विषमतर दुखः भी 
दृष्टा बन जियें अगर बेगाने लगेंगे सुख भी
 


तारीख: 20.10.2017                                    उत्तम टेकडीवाल









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