सदियों से घूम रहा है सृष्टि का यह क्रूर चक्र,
शक्तिशाली का नृत्य है यह, निर्बलों का अंतहीन संघर्ष।
राजा, योद्धा, नेता, ज़मींदार सबने रचे हैं जाल,
नए चेहरे, नए मुखौटे, पर वही पुराना सवाल।
जंगल की गहराइयों में सिंह की दहाड़ गूँजती,
हिरण की डरी आँखों में जीवन की लौ सिमटती।
भय के साए में जीता है हर एक निस्सहाय प्राणी,
दौड़ती है धड़कनें, पर राहें हैं सब वीरानी।
पर आज मैंने देखा पथ में एक नन्हीं चींटी को,
जो मेरे पांव तले कुचलकर खो देती अपना अस्तित्व।
मैंने रोक लिया अपना कदम, बचा लिया उसका जीवन,
इस छोटे से कार्य में निहित है क्रांति का नवोदयन।
इस दया के क्षण में तोड़ा मैंने सृष्टि का वह नियम,
जहाँ शक्तिशाली करता है निर्बलों का संहार।
एक छोटी सी करुणा ने बदल दिया परिप्रेक्ष्य,
अहिंसा के इस बीज में छुपा है परिवर्तन का प्रेरक।
यह छोटा सा कर्म नहीं, विद्रोह की यह चिंगारी है,
सदियों से जमे अन्याय की परतें हमने उतारी हैं।
दया का यह क्षणिक स्पर्श सृष्टिकर्ता को चुनौती है,
हम बदलेंगे यह संसार, यही हमारी प्रतिज्ञा अनूठी है।
दिन-प्रतिदिन के ये छोटे कर्म ही सच्ची क्रांतियाँ हैं,
मानवता के शिखर पर यही हमारी प्राप्तियाँ हैं।
अहिंसा है सबसे बड़ा साहस, सबसे बड़ा परिवर्तन,
प्रेम और करुणा से ही होगा इस जग का नव सृजन।