मैं उस दिन बेहद खुश था
आनन्द से भर गया था
जब मैंने पढ़ा
अपनी पत्नी का भेजा हुआ पत्र।
अब मैं आज़ाद था—
पुलिस की गिरफ्त से
कचहरी के झंझटों से
न जाने कितने
गम्भीर आरोप लगे थे मुझ पर
पर अब मैं
हर बन्धन से मुक्त हो चुका था।
मेरा सम्मान, मेरी शान्ति—
अब लौटने को थी।
लेकिन आज...
मैं बहुत दुखी हूँ
उदास और बेचैन हूँ।
मेरी पत्नी अब नहीं रही—
वो, जो अब
बिलकुल बदल गई थी
उसके हृदय में प्रेम था
व्यवहार में शालीनता
जिससे मैं
बेइंतहा प्रेम करने लगा था।
पर अब वह चली गई
इस दुनिया से बहुत दूर
मुझे तन्हा छोड़ कर।
मुझे उसकी बहुत याद आती है
मैं तड़प उठता हूँ
और पूछ बैठता हूँ—
हे ईश्वर
तूने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?
कभी-कभी लगता है
इससे तो बेहतर होता
वो पत्र ही न भेजती
मैं उसके आरोपों से
जरूर दुखी था, नाराज़ था
पर इतना बेचैन तो न था।
वो चाहे
मुझे प्रेम न करती हो
पर मैं तो
उसे चाहता था।
उसे वापस पाने की
एक उम्मीद तो थी...
पर अब?
तो कुछ भी नहीं बचा—
सिवाय
दु:ख, बेचैनी और तड़प के।
प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली, उत्तर प्रदेश