सपनों में देखूँ अतीत के वो क्षण
जब भारत था जग का उज्ज्वल तारण
ज्ञान की गंगा, तप की धारा
जग को दिशा देता था हमारा भारत।
आज भी हैं बुद्धिजीवी, ज्ञान के द्वार
पर क्यों न उभरते नव सिद्धान्त बार-बार?
क्या केवल शब्दों का हेरफेर शेष है?
या फिर सृजन का दीप बुझ चुका है?
सम्मान व्यक्तियों का है आज महान
पर देश की प्रतिष्ठा क्यों पड़ी अनजान?
विरासत हमारी थी स्वर्णिम और अद्वितीय
अब क्यों है बस आर्थिक विकास की पहचान?
क्या कोई आदर्श बदल सकता धारा?
या हम प्रतीक्षा करें किसी ईश्वर का सहारा?
विश्वविद्यालयों में ज्ञान का समूह
क्यों नहीं लाता नव विचार की सुगंध?
धन का भेद और सुविधाओं का अन्तर
कैसे बनेगा समानता का मापदण्ड प्रखर?
जब तक नैतिकता और कर्तव्य न जागें
तब तक ये प्रश्न गूँजते रहेंगे हमारे भाग्य।
पर मैं मौन नहीं, मैं संघर्ष करूँगा
अपने भारत को फिर से महान गढ़ूँगा
मुझे नहीं चाहिए सम्मान व्यक्तिगत
मेरा लक्ष्य है राष्ट्र का गौरव अद्वितीय।
मेरे मन में है केवल एक पुकार
विरासत को दो फिर से उज्ज्वल आधार
मैं समर्पित हूँ इस पावन कार्य में
भारत हो पुनः जग का नक्षत्र गगन में।
सपनों में देखूँ अतीत के वो क्षण
जब भारत था जग का उज्ज्वल तारण
ज्ञान की गंगा, तप की धारा
जग को दिशा देता था हमारा भारत।
आज भी हैं बुद्धिजीवी, ज्ञान के द्वार
पर क्यों न उभरते नव सिद्धान्त बार-बार?
क्या केवल शब्दों का हेरफेर शेष है?
या फिर सृजन का दीप बुझ चुका है?
सम्मान व्यक्तियों का है आज महान
पर देश की प्रतिष्ठा क्यों पड़ी अनजान?
विरासत हमारी थी स्वर्णिम और अद्वितीय
अब क्यों है बस आर्थिक विकास की पहचान?
क्या कोई आदर्श बदल सकता धारा?
या हम प्रतीक्षा करें किसी ईश्वर का सहारा?
विश्वविद्यालयों में ज्ञान का समूह
क्यों नहीं लाता नव विचार की सुगंध?
धन का भेद और सुविधाओं का अन्तर
कैसे बनेगा समानता का मापदण्ड प्रखर?
जब तक नैतिकता और कर्तव्य न जागें
तब तक ये प्रश्न गूँजते रहेंगे हमारे भाग्य।
पर मैं मौन नहीं, मैं संघर्ष करूँगा
अपने भारत को फिर से महान गढ़ूँगा
मुझे नहीं चाहिए सम्मान व्यक्तिगत
मेरा लक्ष्य है राष्ट्र का गौरव अद्वितीय।
मेरे मन में है केवल एक पुकार
विरासत को दो फिर से उज्ज्वल आधार
मैं समर्पित हूँ इस पावन कार्य में
भारत हो पुनः जग का नक्षत्र गगन में।
- प्रतीक झा 'ओप्पी'
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश