तुम्हें अपना बना लुँ मैं लेकिन

 

तुम्हें अपना बना लुँ मैं लेकिन
कल अपने बेगाने बन जायेंगे
तुम्हें दिल में बसा लुँ मैं लेकिन
बेवज़ह फ़साने बन जायंगे

तेरी नज़र-ए-इनायत मुझ पर है
मुझे ख़ुद पे गुरूर हो जाता है
तुम जब भी पास आते हो मेरे
दिल मुझसे हीं दूर हो जाता है
तुम रहते हो मेरे ख़्वाबों में
दुनिया को बताना बाकि है
रोज़े तो कब के खत्म हुये
अभी ईद मनाना बाकि है
तुम्हें छत पे बुला लुँ मैं लेकिन
सब तेरे दिवाने बन जायेंगे
तुम्हें अपना बना लुँ मैं लेकिन
कल अपने बेगाने बन जायेंगे

दिन मेरे तब बन जाते हैं
जब तुम यूँ हीं मिल जाते हो
चाँद फीका लगता है मुझको
जब खिड़की पे तुम ख़िल जाते हो
बहुत इशारे हुये दूर से
अब मिलने भी आ जाओ
एक मुद्दत से मैं प्यासा हुँ
तुम बदरी बन कर छा जाओ
अपनी नज़रें बिछा लुँ मैं लेकिन
तेरे और बहाने बन जायेंगे
तुम्हें अपना बना लुँ मैं लेकिन
कल अपने बेगाने बन जायेंगे

तेरे चाँद से रौशन चेहरे पर
हर शख़्स शायर हो जाता है
जो देख ले तुझको एक नज़र
आँखों में तेरी खो जाता है
जो भी लिखा अब तक मैंने
बस हम दोनों की कहानी है
बना न सका जो आज तक  
वो तस्वीर मुझे बनानी है
तुम्हें गीतों में ढालुँ मैं लेकिन
मगरूर तरानें बन जायेंगे
तुम्हें अपना बना लुँ मैं लेकिन
कल अपने बेगाने बन जायेंगे

ख़ुद ख़ुदा ने दिया ये काला तिल
कि नज़र तुम्हें ना कोई लगे
सब दूर से तुम्हें देखा करें
और आहें दिल में भरा करें
फ़रिश्तों को अक्सर देखा है
मैंने तेरी गली में फिरते हुये
कई तारे छत पर आ बैठे तेरे
आसमाँ से गिरते हुये
तुम्हें नज़रों मे छुपा लुँ मैं लेकिन
सूरज के बहाने बन जायेंगे
तुम्हें अपना बना लुँ मैं लेकिन
कल अपने बेगाने बन जायेंगे
तुम्हें दिल में बसा लुँ मैं लेकिन
बेवज़ह फ़साने बन जायंगे


तारीख: 12.08.2017                                    प्रमोद राजपुत









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