विवाह-निमंत्रण

मिल गया है आज सखी,
तेरे विवाह का निमंत्रण।
सोच रही हूं मन ही मन,
क्या कर दूं तुझ पर अर्पण।

दूर सखी जाकर हमें,
भूल कभी न जाना।
जैसा था प्रेम हमारा,
वैसा ही परस्पर निभाना।

बोलो अपनी कसम कहो,
भूल हमें न जाओगी।
झूठा ही कह दो ना,
याद बहुत तुम आओगी।

अपनी मैं क्या बात कहूं,
निरे-लड़कपन का साथ है अपना।
मिलजुल कर हमने साथ-साथ,
देखा है अगणित सपना।

वो भोली-भाली उमर याद है,
बिन बात ही जब ठन जाती थी।
याद नहीं पड़ता मुझको,
कब और कैसे बन जाती थी।

कब किसने हाथ बढ़ाया,
स्मृतियों में याद नहीं।
याद है बस मुझको इतना,
हम सब बरसों हैं साथ रहीं।

भूले से गर भूल गयी,
याद रहे पछताओगी।
सारी दुनियां घूम लो तो भी,
मीत न मुझसा पाओगी।

वाद-विवाद बहुत हुआ,
अब ले लो आर्शीवाद भी।
जहां रहो खुश रहो,
दुःख हो ना अपवाद भी।

एक पाती लिख-लिख,
कुशल समाचार कहना।
रहो जहां भी तुम,
हाल सदा अपना कहना।

घर-गृहस्ती में लगकर,
खुद को भूल ना जाना।
जो भी हो स्मरण रहे,
अपना वचन निभाना।

तोड़-फोड़ बहुत मची है,
मिलजुल कर सुख से रहना।
तुमसे कोई रूठ जाये,
ऐसी बात कभी न कहना।

चलते-चलते बात फिर अपनी,
एक बार और दोहराती हूं।
जहां रहो सुखी रहो,
यही ईश्वर से मनाती हूं।
                    


तारीख: 18.03.2018                                    सबा रशीद सिद्द़ीकी़









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