आत्महत्या अब और नहीं

सर रखकर रोना चाहो,
तो ये कांधा तुम्हें समर्पित है।
फर्क नहीं तुम्हारी जीत-हार से,
ये सीना अब भी तुम पर गर्वित है।
क्यों चिंतित हो ये सोचकर,
कि क्या खोया-क्या अर्जित है।
धरा झेलती घाव, फिर फसल उगाती,
फिर भी देखो कितनी हर्षित है।

नव अंकुर फूट जाता है,
जब फिर से भूमि बंजर पर।
पवन सुहानी चलने लगती,
गुजर उपरांत तूफानों के मंजर पर।
ऊंची हो लहरें कितनी सागर की,
पर होता फिर से शांत है।
फिर क्यों होता तू जीवन से,
इस तरह भयाक्रांत है।

जन्म पर जब नहीं तुम्हारी मर्ज़ी,
तो फिर क्यों मृत्यु को अंक लगाते हो।
पाल-पोसकर जिन्होंने किया बढ़ा,
क्यों उनको इतना रुलाते हो।
माना कि काली अंधियारी रात है,
पर सूरज फिर से निकलेगा।
हौसला रखो, उम्मीद न छोड़ो,
वक़्त तुम्हारा फिर से बदलेगा।

माना कि दिल में दर्द बहुत है उनके,
जो इतना बड़ा कदम उठाते हैं।
लगता उनको यही समाधान,
जो इस जीवन से खुद ही छुटकारा पाते हैं।

कितनी आंखे हो जाती,
उनके इस अचानक फैसले से नम।
इससे अच्छा पहचानो अपनों को,
उनसे बांटो तो कुछ गम।
अगर कोई न लगे अपना तो उस ईश्वर में विश्वास रखो।
कर्तव्यपथ पर रहो अग्रसर,
जारी अपना प्रयास रखो।
संपर्क में रहो दोस्तों के,
चाहे कितने भी व्यस्त रहो।
न हों दोस्त तो कुछ बातें ,
कलम उठाकर अपनी डायरी से कहो।

कभी नदी को देखा तुमने,
जो कल-कल बहती जाती है।
रास्ते में आने वाले सब,
कंकड़-पत्थर सहती जाती है।
पर उसका जो अंत नियत है सागर में मिलकर,
उससे पहले कहीं न रुकती है।
समझौते कर लेती रास्ते बदलकर,
पर कभी किसी के भी सम्मुख न झुकती है।

माना कि खुद की जिंदगी खुद खत्म करने के बहाने बहुत हैं,
पर यकीन करो ये जिंदगी बहुत खूबसूरत है, इसके मायने बहुत हैं। 


तारीख: 11.04.2024                                    सुणीत सिज़रिया









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