तैयार की जाती है औरतें
इसी तरह
रोज छेदी जाती है
उनके
सब्र की सिल
हथौड़ी से चोट होती है
उनके विश्वास पर
और
छैनी करती है तार – तार
उनके आत्मसम्मान को
कि तब तैयार होती है औरत
पूरी तरह से
चाहे जैसे रखो
रहेगी
पहले थोड़ा विरोध
थोडा दर्द
जरुर निकलेगा
आहिस्ते – आहिस्ते सब गायब
और
पुनश्च
दी जाती है धार
क्रूर मानसिकताओं को
स्वछंद छोङ कर
होते हैं
अट्ठाहस
कानून के रहनुमाओं के
मय की छतरियों तले
मिल-मिल कर कातिलों के गले
हो सकता है
कि
कोई उत्तम
या जनसाधारण
ये पापपूर्ण मंजर
सह जाये
पर
ये याद रहे
तुम नहीं सह पाओगे
जब
कुदरत का कानून
तुम्हें छेदेगा