निश्छल वाणी ,सौन्दर्य की देवी
राधा सी चितवन पाई हो ,
ए रूप सुंदरी भाग्य विधाता
क्या सोच धरा पर आई हो ।
इंसान हो या हो फरिश्ता ,
मन हर्षित अब रहता है ,
कदमों के नीचे मिट जाऊँ
बन पुष्प सुमन अब करता है ।
हो साथ तुम्हारा जीवन मे ,
बस यही कामना करता हूँ
कठिन डगर है ठेस लगे न
यही सोच कर डरता हूँ ।
ए मालिक उनकी खातिर,
मेरी भी खुशियाँ ले लेना
सुख-दुख के बीच चुनाव रहा तो
मुझको सारे दुख दे देना ।
मुरझाए फूलों को भी ……… एहसास नयापन मिलता है ,
ए नर्गिस तेरे खातिर हीं, यह फूल चमन मे खिलता है ।