असमंजस

पिछले कुछ दिनों से मन भारी-भारी लगता है,
रात भर जागती हूँ,
और सुबह सोने को दिल करता है।

पता नहीं अपने सारे कर्तव्य ठीक से निभा तो रही हूँ ना,
यह सोच कर मन थोड़ा व्याकुल सा रहता है।

पिछले कुछ दिनों से मन भारी-भारी लगता है।

कई बार खुदगर्ज होकर मैंने अपनों को रुलाया है,
आज उन गुनाहों की सजा से डर लगता है।

पिछले कुछ दिनों से मन भारी-भारी लगता है।

जीवन के इसे मोड़ पर कुछ अकेली सी पड़ गयी हूँ,
जिन रिश्तो को कभी तोड़ दिया था,
आज उनको फिर से जोड़ने को दिल करता है।

पिछले कुछ दिनों से मन भारी-भारी लगता है।

इस बार कहीं देर न हो जाये,
मेरे अपने कहीं मुझसे  छूट न जायें ,
इसलिए आज कुछ कदम उलटे चलने को मन करता है।

पिछले कुछ दिनों से मन भारी-भारी लगता है।
 


तारीख: 15.06.2017                                    मनीषा श्री









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है