वह बीती बातें बीतें सपने
दोस्त यार वह रिश्तें अपने
जो प्रेमभाव लगन से सींचे
छोड़ आएं जानें क्यों पीछे
कुछ नए सपने अब सजते हैं
कुछ गीत नए अब बजते हैं
नए नगर की चहलपहल में
दौड़भाग के इस बड़े शहर में
नित नए नए रिश्तें बनते हैं
जो बनते और बिगड़ते हैं
अटूट रहे अब वह बात नहीं
लम्बे चले वो संग साथ नहीं
अब पहले जैसी बात नहीं
वो संग सखा वह जज़्बात नहीं
मेरी गलियां मेरा मोहल्ला
हँसी खेल वो हल्ला गुल्ला
एक दूजे का साथ निभाना
घर जैसा था आना जाना
वो चुम्बक से दिन मन को खींचे
छोड़ आये जिनको हम पीछे।
शीतलता से दूर खड़े दोपहर में
दौड़भाग के इस बड़े शहर में
जतन करें हम चाहे कितने
मिले नहीं जो बसें है मन में
वह बीती बातें बीतें सपने
दोस्त यार वह रिश्तें अपने