बेटी का दर्द।

बेटी का दर्द।
करती पूरे घर के अरमान,
देखते जो आप सपने महान,
अगर मैं बेटा होता।
कंधे से कंधा मिलाकर चलती,
फिर जिंदगी यूं झटपट दौड़ती,
मन में ना रहती टीस,
ना होती किसी बात की खीझ,
अगर मैं बेटा होता।
भर देती दामन खुशियों से,
मां के आंचल में,
फिर ना रहती शिकायत कोई जमाने में,
अगर मैं बेटा होता।
लेकर उदाहरण मेरा,
करते सब जब आदर मेरा,
दिल गदगद हो जाता,
अगर मैं बेटा होता।
रिश्ते,नाते, प्यार, मोहब्बत की बातें,
कुछ ख्वाहिशें , कुछ चाहतें,
पूरी हो जाती,
अगर मैं बेटा होता।
घर बाबुल का छोड़कर,
ना जाना पड़ता,
ना चाहकर पराया बनना पड़ता,
अगर मैं बेटा होता।


तारीख: 05.03.2024                                    रेखा पारंगी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है