क्या बाबरी जन्नत हो जाएगी मस्जिद वहीँ बनाने से?
रामलला क्या वापिस आएंगे मंदिर वहीँ बनाने से?
छोड़ कसम इंसान ज़रा बन बैर हटा ले ज़माने से,
आगे बढे तो क्या भेद रहेगा चिल्लाने में, रंभाने से।
जो एक कान में शंख है गूंजे दूजा कान दुआ ले आये,
मानवता प्रफुल्लित हो बस भगवान चाहे आये न आये।
एक कसम जो छोड़ी तुमने कोई दूजा कसम न खाएगा,
न मन्दिर कोई गिराएगा न मस्जिद कोई गिराएगा।
देख मनोहर वह गुरुद्वारा शांत संगीत सुनाता प्रतिदिन है,
बैठा भीतर अक्स गुरु का भगवान खिलाता निसदिन है।
न देसी घी का प्रसाद चढ़ा न चादर दे बिस्मिल्लाह को,
जठराग्नि मिटा दे भूखों की दे भोजन बेबस भिखमंगों को...
हाँ, तुझको भगवन मिल जाएंगे,तू मिल जाएगा अल्लाह को!