भ्रम

भ्रम आज भी है
कि मैं भ्रम में हूं
क्यों भूल जाते हैं
रोज भ्रमवश हम सब
हर ओर व्यवधान नहीं
वक्त पर सब होता है 
कभी धन से कभी बल से
हर ओर अड़चन सही
पर चांद उदित होता है
यहीं आकाश में
सब खल नहीं होते
स्वजन भी होते हैं
घने बादलों में भी गर्जन है
तुम आओ तो सही कभी
इस भ्रम से निकलकर
करीब ही मंज़िल है
यह भ्रम नहीं
सत्य है


तारीख: 04.04.2024                                    मनोज शर्मा




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