चल उड़ पंछी नीड़ से,
पँखो को परवाज़ दे,
घायल हुए पंख तेरे,
कुछ कंटीले तारो से,
तपिश सूरज की,
गर्म हवा के थपेड़े,
बनेगे लेप तेरे घावों के,
उड़ने से तू क्यों घबराये!
ताक रहा नभ भी तुझको,
आतुर दृष्टि से बाहें फैलाये,
कर हिम्मत जो तू उड़ पायेगा,
अपनी मंज़िल तू पा जायेगा!
चल उड़ पंछी नीड़ से….