कोयल की कूक, मोगरे की महक,
पीपल की घनी छाँव,
कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान ?
वाणी का सम्मोहन, खुशबु की मादकता
और
क्लांत एवं तापित मन को
शीतलता का अहसास
स्वतः ही करा देते
अपने महत्वपूर्ण होने का भान ।
प्रेम तो है अभिव्यक्ति एवं अनुभूति
ह्रदय के मनोभावों की
जब शब्द हो जाये असमर्थ ।
स्नेह और आत्मीयता का पर्याय प्रेम
प्राप्ति नहीं अर्पण कर
स्वतः ही करा देता
अपनी गहराईयों एवं ऊँचाईयों का भान ।
प्रेम में गांभीर्य, माधुर्य
और निस्वार्थ त्याग
के जो है सुपात्र
कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान ?
अपनी अक्षमता से नहीं
उनके प्रभुत्व से हैरान है हम
सतही प्रयास के बलबूते
ख्याति पाने की अकुलाहट है ।
आत्मचिंतन से विमुख होते परिदृश्य में
गहन मंथन कर प्रतिभावान
स्वतः ही करा देते अपनी श्रेष्टता का भान
सादगी, उत्कृष्टता और
सामर्थ्य का करते जो वरण
कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान ?