कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान

कोयल की कूक, मोगरे की महक, 
      पीपल की घनी छाँव, 
 कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान ? 
 वाणी का सम्मोहन, खुशबु की मादकता 
            और 
     क्लांत एवं तापित मन को 
       शीतलता का अहसास
        स्वतः ही करा देते 
    अपने महत्वपूर्ण होने का भान । 

प्रेम तो है अभिव्यक्ति एवं अनुभूति 
     ह्रदय के मनोभावों की 
  जब शब्द हो जाये असमर्थ । 
स्नेह और आत्मीयता का पर्याय प्रेम 
     प्राप्ति नहीं अर्पण कर 
      स्वतः ही करा देता 
अपनी गहराईयों एवं ऊँचाईयों का भान । 
     प्रेम में गांभीर्य, माधुर्य 
      और निस्वार्थ त्याग 
       के जो है सुपात्र 
कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान ? 

     अपनी अक्षमता से नहीं 
  उनके प्रभुत्व से हैरान है हम 
     सतही प्रयास के बलबूते 
  ख्याति पाने की अकुलाहट है । 
आत्मचिंतन से विमुख होते परिदृश्य में 
   गहन मंथन कर प्रतिभावान 
स्वतः ही करा देते अपनी श्रेष्टता का भान 
     सादगी, उत्कृष्टता और 
    सामर्थ्य का करते जो वरण 
 कब करते निज-श्रेष्ठता का बखान ? 


तारीख: 15.06.2017                                    भारती जैन









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