भटकते मुसाफ़िरों को
अनजानी धुंधली राहों पर
अवसाद- अंधेरों के बीच
हवाओं से मिटते निशानों को
नई राहों से गढ़ना होगा
दीप जलाकर चलना होगा
जंजीरों में जकड़ा जीवन
साँसों पर ही मिटता तन-मन
सहमी, बेचैन निगाहों से
हर लम्हे को पीना होगा
फूल बन कर खिलना होगा
दीप जलाकर चलना होगा
समुद्र की उत्ताल लहरों की तेजी से
डगमग-डगमग डोलती नावों को
बुझती- बनती उम्मीदों पर
नये रंगों से, नई सोच को
स्वर्णिम अक्षरों से लिखना होगा
दीप जलाकर चलना होगा