तुम्हारी यादें

यादें उस शाम की रह गई
जब तुम्हारी खामोशियां भी बोला करती थी
हमारी यादों में तुम अब भी हकीकत हो
पर तुम्हारी हकीकत में शायद
हम एक फसाना बन कर रह गए
कभी तुम्हें दिल से चाहा था
आज खुद को तुम्हारी चाहत में डूबो दिया
मिलेंगे तुमसे एक दिन फिर
सब्र करो जरा मौत को करीब
बस आ जाने दो.....


तारीख: 21.03.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली






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