दीया

सांझ ढले दीया जले,
जल जल कर दे अपना बलिदान,
फैलाने को इस जग में नयी ज्योति और ज्ञान.

जगमगाती लौ इसकी,
सदा उठती ऊपर की ओर,
इस अँधेरे जग को,
देने उजाला चहूँ ओर.

सन सन हवाओं में,
इठलाता, बलखाता,
जलता जाता लाने को,
इक नया सवेरा नयी भोर.


तारीख: 22.06.2017                                    आकाश जैन




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