दूर रहें या रहे पास

दूर रहें या रहे पास,
विश्वास की डोर हो पास
संबंधों की प्रगाढ़ता टूट ना पाए,
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन।
माना जीवन है कठिन बहुत
राह में इसके कांटे बहुत
हर हाल में देना साथ तुम
ठोकर लगे अपनों को
उम्मीदों के पांव रखना तुम
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन।
देकर अपनापन उसे तुम
जीवन के सफ़र में छांव देना तुम
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन
भटक जाए राह में कोई अपना जब
हाथ थाम कर संभाल लेना तुम
देकर प्यार उसे लड़ना सीखाना तुम
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन।
यूं तो हर कोई देता साथ नहीं हरपल
लेकिन अपनों की पहचान वक्त ही कराता हरपल
देकर समय किमती, रिश्तों को तुम बचा लेना
मुश्किल घड़ी देकर अपना हाथ
सदैव विश्वास और त्याग रखना साथ
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन।
मुसीबतों के बादल यूं ही छट जाएंगे
संग जब अपने हो हर विपदा को पार लगाएंगे
सुख दुःख में मिलकर
जीवन पार लगा देंगे
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन।
जीवन की आपाधापी में,
मत भूलो तुम अपनों को
बिना उनके नहीं है कोई और बंधन जग में
कुछ भी हो मगर हो संबंधों में अपनापन।


तारीख: 01.03.2024                                    रेखा पारंगी









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