एक नई शुरूवात

चलो समंदर का एक किनारा ढूंढे
खो दिया जो विश्वास वो दोबारा ढूंढे
एक दिन तो ख़त्म होनी ही है ज़िन्दगी
उससे पहले शुरुआत इसकी दोबारा ढूंढे
चलो समंदर का...
मूरत कोई बेशक्ल और निराकार ढूंढे
सनातन किसी शून्य का आकार ढूंढे
मन में न हो सिर्फ वास्तविक भी जो हो थोड़ा
आपसी प्रेम का ख़ुद में कोई अम्बार ढूंढे
चलो समंदर का....
दांव लगा ख़ुद ग़ैर की ख़ातिर ऐसे कुछ भगवान ढूंढे
लाठी पत्थर छोड़ रुके जो ऐसे कुछ इंसान ढूंढे
भीड़ में कोई न पहचानेगा एक अकेले चेहरे को
हटकर उस भीड़ से ख़ुद की एक सच्ची पहचान ढूंढे
चलो समंदर का....


तारीख: 12.04.2024                                    आलोक कुमार









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