फ़िक्र

तुझे ही मेरी फ़िक्र न है वरना, वो देख !,
सारा शहर मोहब्बत को मुझसे और 
मुझको महब्बत से जानता है !

तू खुद नाप ले मेरी मुहब्बत का पैमाना !
मेरे शहर के हर मयखाने का प्याला ,
तेरा नाम जानता है !

अब तो मेरी रूह भी वाकिफ है तेरी वफाई से ,
पर ये दिल मेरे अंदर होके भी मेरी बात न मानता है !
मैं भी चाहता हूँ तुझे भुला दू तेरी ही तरह !
पर क्या करूँ ,
कुछ इस कदर बस गयी है तू मुझमे ,
की मेरा रोम रोम मुझे अब तुझसे पहचानता है !

सिर्फ एक तू ही है जिसे मेरा प्यार न दिखा 
वरना सारा शहर मुझे तेरे आशिक़ के नाम से जानता है !
तेरे सिवा मेरे पास कुछ न था खोने को ,
पर तेरे जाने के बाद ये शराब का प्याला मुझे संभालता है !

मेरी हालत अब उस शीशे सी रह गई है फकत !
टूट भी जाऊँ सौ टुकड़ो में मगर ,
हर टुकड़ा तेरे अक्स को खुद का गवाह मानता है !


तारीख: 10.06.2017                                    आदित्य प्रताप सिंह‬









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