खुदी को कर ले बुलंद

खुदी को कर ले बुलंद यों तमाम होने तक
ये  रात  बीत  न  जाए  क़याम  होने  तक

मिली है  आज ख़बर मुझको अपने होने की
ख़बर बदल ही न जाए हम-कलाम होने तक

जूनून  ज़ज़्बो  में  मेरे  अज़ीब  जोश  भरे
अहल-ए-दिल में यों हमको इत्माम होने तक

गुज़र  रहा  है  ये  सूरज  ग़रूर  में  अपने
पता नही उसको ढलना है शाम होने तक

क़मर को नाज़ है अपने हुश्न पे हो आकिब'
ठहर  भी  जाइए  मेरा भी नाम होने तक


तारीख: 19.02.2024                                    आकिब जावेद




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है