तेरी यादों का एक दौर उमड़ पड़ा है,
मेरे इस दिलो जहाँ में
जो बरसता नहीं कभी भी,
बस यूँही घुमड़ता रहता है।
दूर से चले किसी तूफां की तरह,
अपनी आहटें देता रहता है
घड़ी घड़ी और पल पल।
डर नहीं इससे मुझे कोई भी,
मैं तो कब से इसी आस में बैठा हूँ
की ये कब मुझे खुद में डुबोकर,
तुझमे समा ले जाये।
पहर, दोपहर गिन रहा हूँ मै अब तो,
जाने कहीं से तेरी आवाज का सागर
छनकता हुआ तेरी पाजेब सा,
आ जाये
और मुझे छोड़ आये वहीँ कहीं
जहाँ तू आती है,
घड़ी घड़ी और पल पल।