घर की बालकनी से ही
कर लेती हैं आलिंगन
करोडों रास्तों की दूरी पर बसे
असंख्य तारों का
उतर जाती हैं
एक छलांग में ही
काली गहरी खाईयों में
आँखों को नहीं ज़रूरत
सीढ़ियों की
कंधों की
सहारों की
मैं खुद के अस्तित्व को
बस और बस
आँख बनाना चाहता हूँ
बेसहारा!!!
आवारा!!!