अगर ये खूं नहीं तो लाश खूं आलूदा क्यों है
अगर ये कत्ल है हर कत्ल से जुदा क्यों है
जो शक के घेरे में हैं लाश को घेरे हुए है
जिस पर शक नहीं वह शख्स गुमशुदा क्यों है
लाश के सियापे पर शख्स कोई हंस रहा था
बाद में लगा रोने अदा यह बेहूदा क्यों है
हमारे दिल में जो ढलती तुम्हारी इबादत से
तब फिर सोचते बस्ती में मैकदा क्यों है
लाश के उठने पे जब इतने आंसू बह रहे थे
घर से हो रही तब लाश कि विदा क्यों है
होंठ तो कसे थे लेकिन लगा कुछ कहा तुमने
अगर तुम चुप ही थे तब आई ये सदा क्यों है
जीत तो सितारों की होगी ये तो तय शुदा है
लड़ाई उनकी हार अपनी तय शुदा क्यों है