हौसले

नहीं ऊँची ऐसी चोटी जो हौसले डगमगा सके,
नहीं अटल ऐसी आंधी  जो पथ से डिगा सके ।
नहीं सपने काँच के टुकड़े जो गिर कर बिखर जाए ,
नहीं इरादे कमजोर इतने कि मुश्किलों से डर जाए ।

चट्टानों से टकरा-टकराकर सीने को है फौलाद बनाया ,
तूफानों में ठोकर खाकर कदमों को है नाबाद बनाया ।
रंग लहू का लाल गुलाब सा, दहक अँगारों सी है,
दिल मिट्टी का है मगर, अरमां सितारों की है ।

हो जाए गुम अब सूरज भी रात के गलियारे में,
चाँद भी चाहे हो ढला ज्यों परछाईं-पहाड़ों में ,
पर झुकेगा आसमां भी एक दिन मेरे सूरज के आगे 
नहीं चुपेगी चाँदनी भी चाहे हो खड़ा सामने पर्वत सीना साधे ।


तारीख: 30.06.2017                                    जय कुमार मिश्रा









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