इस कलियुग के दौर से
व्यभिचारी के तौर से
भ्रस्टाचार के जोर से
बलात्कार के शोर से
त्रस्त हूँ मै
राजनीति के नए प्रयोग से
जाति-धर्म के बढ़ते भोग से
गंदी मानसिकता के रोग से
पत्रिकारिता के नए ढोंग से
त्रस्त हूँ मै
इन झूठे अधिकारों से
समाज में मिलते धिक्कारो से
ऐसे सरकारी मक्कारो से
देश में बैठे गद्दारो से
त्रस्त हूँ मै
राष्ट्रवादिता की झूठी दुकान से
संविधान के होते अपमान से
खोते बाबा साहेब के सम्मान से
गांधी के छवि के नुकसान से
त्रस्त हूँ मै
जीवन की आपाधापी से
ज़िन्दगी के कठिन मोड़ से
नित रोज नये होते शोर से
बदलते समय के जोर से
त्रस्त हूँ मै