गाँव से कुछ बाहर हरिया की झोपड़ी है| हरिया एक मजदूर है जो दूसरों के
खेतों में काम करता है और परिवार का पालन – पोषण करता है| परिवार
के नाम पर उसके घर में बस उसकी माँ रधिया देवी और उसकी पत्नी
रनिया है|
गर्मी का मौसम आ गया है| जेठ का महीना है| हरिया रोज सुबह खेतों
में काम करने जाता है और दोपहर में खाना खाने के लिए घर आता है|
फिर कुछ आराम करके चला जाता है|
रोज़ की तरह आज भी हरिया खाना खाने के लिए आने वाला है| उसकी
माँ और पत्नी उसकी राह देख रही हैं| दोपहर का समय है और सूर्य
देवता अग्निवर्षा कर रहे हैं| गर्म हवा चल रही है|
जेठ की है तपती दुपहरिया,
जलती है जैसे डगरिया |
सूर्य नारायण आगबबूला हैं,
गरम है बहती बयरिया ||
तभी हरिया आता है | वह थका हुआ और पसीने से तरबतर है| रधिया देवी
रनिया से कहती हैं |
जाओ रे बहू, जल्दी जाओ,
जाकर ठंडा पानी लाओ |
देखो न कैसे हांफ रहा है,
खेत से आया है हरिया ||
रनिया कुछ नहीं बोलती | वह चिंतित है और चुपचाप खड़ी रहती है| सास
पूछती है , तो वो जवाब देती है |
कैसे मैं लाऊँ ठंडा पानी ?
हर घर की अब यही कहानी|
कुँए भी सूखे, कल भी सूखे,
सुख गई है पोखरिया ||
हरिया के चेहरे पर दुःख के भाव हैं | वह कहता है|
साँची है हमरी महेरिया,
कुदरत के है ई कहरिया|
जंगल, उपवन साफ हुए सब,
कैसे अब बरसे बदरिया ?
सबके मनवा में छाई अन्हरिया,
है कौनो के नाहि फिकिरिया,
घर बन रहे , गाँव घट रहे,
बढती ही जाए नगरिया ||
दोनों औरतें दुखी होकर पूछती हैं – ” अब क्या करना चाहिए?”
हरिया उन्हें समझाता है |
पेड़ – पौधों की लगाओ कतरिया,
बचाओ नदी , झील और नहरिया|
धरती बचेगी , सुख बरसेगा,
न कैसे , अंगना में आई बहरिया||
सब खुश होते हैं| रनिया अपने बहन के यहाँ जाकर एक लोटा पानी ले
आती है| हरिया मुंह–हाथ धोता है | फिर खाना खाकर, पानी पीकर,
कुछ देर आराम करता है और फिर खेतों की और चल देता है| दोनों
औरतें उसे जाते हुए देख रही हैं