झुण्ड में उड़ते पंछी

वो पंछी झुण्ड में उड़ते थे 
चंद ख्वाबें थी एक मंज़िल था 
उनको उस देश ही जाना था
कुछ सात समंदर पार का देश 
कहते हैं वहां सावन मीठा था 
कुछ अपना सा कुछ सपना सा 

इक पंछी उनमे ऐसा था 
न ख्वाबें थी न मंज़िल  था 
बस झुण्ड के साथ वो चलता था 
बिना रुके बिना रुके 
बस झुण्ड के साथ ही चलता था 

गर  कुछ दूर ही आगे मंज़िल हो 
बस एक समंदर या उससे कम 
और वो पंछी बेदम हो जाये 
थक कर वो गिर जाये 
तो रिश्ते नाते प्यारे सब 
क्या उसकी खातिर रुकेंगे ?

इस दुनिया की है रीत यही 
जो उड़ते रहो तो साथ बहुत 
जो रुक जाओ तो तनहा हो !!
 


तारीख: 18.06.2017                                    मनोरंजन चौधरी









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