जो बात
तेरे मुस्कुराने में थी
खिलकर वो बात फूलों के महकने में नहीं
आंचल तो बहुत लहराते देखे
तेरे आंचल के सिवा
मेरी ख्वाहिशों को
कोई ओर महफूज जगह मिली नहीं
कसम से जो बात बिन पिये
पहली मुलाकात के बहकने में थी
"ऐ गालिब वो बात संभलने में नहीं
भूले से भी
भूलाया नहीं जाता वो मंजर
नजाकत भरे तेरे नैनों का खंजर
तू क्या जाने ऐ गालिब
जो बात तेरे नैनों के समंदर में
अपनी कस्ती ढुबाने में थी
वो बात तुफानों से कस्ती बचाने में भी नहीं
ग़म इस बात का नहीं
कि वो लम्हा अतीत बन गया
ग़म तो इस बात का था
कि वो अतीत आगे निकल गया और मैं वहीं ठहर गया
लेकिन सच ये भी है
कि जो बात वहीं पर ठहरने में थी
वो बात ऐ गालिब मंजिल बदलने में नहीं