कोई रहता सा है

आज दिल कुछ बैठा सा है,
लगता है आज भी इसमें,
कोई रहता सा है।

कहने को कह देता हूँ, कि 
मैं अकेला चल रहा हूँ, 
पर हर पल वो,
साथ रहता सा है।

जब मुझे खुशियां मिले,
तो उनमे भाग हो तुम्हारा,
में जो गुनगुनाऊँ,
बस राग हो तुम्हारा।

तुम्हारी यादों का अक्स,
इन रगों में अब भी,
बहता सा है,
आज दिल कुछ बैठा सा है,
लगता है आज भी इसमें,
कोई रहता सा है।

सहर से शब हो जाती है,
पर चैन नसीब नहीं होता,
तन्हा घूमता है दिल,
किसी के करीब नहीं होता, 
कोशिश  करता यह भी है,
लेकिन कोई इसका,
रकीब नहीं होता,
हर पल अकेलापन,
सहता सा है।

अब लगता है आज भी इसमें,
कोई रहता सा है।
आज दिल कुछ बैठा सा है,
लगता है आज भी इसमें,
कोई रहता सा है।
 


तारीख: 15.06.2017                                    सूरज विजय सक्सेना




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