कोलाहल

रहस्य के किसी महाद्वीप पर
मैंने शब्दों का नीड बनाया है
वहाँ सपनों के
पहाड हैं
नदियाँ हैं
चिडियों का एक संसार है।
वहाँ सबकुछ है
प्रकृति खुले में निर्वस्त्र होकर
नाचती है।
मैं वहाँ
सदियाँ गुजारना चाहता हूँ।

पर
यह हरामी मन है
मेरे पास
जो गन्दी मैली बातों से
मैला कुचैला कर
बरामदे को
बेचैन किए रहता है।

मैं बहुत दुखी हूँ
इस मन से
कभी अकेला
नहीं रह पाता हूँ
इस की कोलाहल से!


तारीख: 10.02.2024                                    वैद्यनाथ उपाध्याय









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