क्रांति


दोपहरी की आग जब जलती है
दुख की लपटें 
आसमान को छूने लगती हैं
तब दुख ही छतरी लेकर
आदमी को उन लपटों से
बचाकर सुखी बनाता है

मागें जितनी अधिक होंगी
तड़प उतनी ज्यादा होगी
पाँव के छाले जब फूटते हैं
चरणपादुकाएं तब पावों को
राहत पहुँचाती हैं

जब अत्याचार चरम पर होता है
उसके खिलाफ़ खड़ा होना 
जरूरी होता है

ओ ऐसे अत्याचार से त्रस्त लोगो
छेनी-हथौड़ा कुदाल भाला ही सही
तुम अपने सारे शक्तियों को एकत्रित कर 
अत्याचारयों के अत्याचार को ललकारो

करो क्रांति का शंखनाद
ताकि मनुष्यों को मिलें 
उनके मौलिक अधिकार
और उनके सारे सपने साकार हों।
 


तारीख: 15.04.2024                                    नीतू झा









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