मेरी माँ अब बूढी हो रही है…
कल तक पाल रही थी मुझे ,
आज खुद बच्चे की सी हो रही है ,
मेरी माँ………
मेरे लिए सपने सजा खो दी उसने आखें,
अब यादों में मेरी गुम हो रही है ,
मेरी माँ ……
बना के काबिल महफ़िलों के मुझे,
खुद खुले आँगन में अकेली सो रही है ,
मेरी माँ ……
मैं निकाल रहा हूँ सागर से सीप ,
वह सांसों के आखिरी मोती पिरो रही है ,
मेरी माँ……
मेरी चाह दुनिया मुट्ठी में करने की
अपना ही माँ मोह खो रही है
मेरी माँ……
रोज़गार के चंद सिक्के हैं मेरे हाथ,
वह लकीरों का तमाशा जोह रही है,
मेरी माँ अब बूढी हो रही है …..