यह जीवन मेरा

यह जीवन मेरा
था कभी नीरस
घने बबूल के वृक्ष जैसा,
असंख्य कांटों से भरा
थी जिसमे प्रतिरोधकता
सहने को तूफान घोर
और लड़ने को पुरजोर
फिर तुमने ढक लिया
इन कांटों को अपनी
प्रेम रूपी लताओं से,
अनुभव कराई मृदुलता
अचेतन हृदय के तल से,
अंतर्मन से अनुभूति को
जगाकर शीतलता से।
सज्जित कर दिए
मन के धरातल में
भाव जो प्रेमरहित थे।
परिवर्तित कर दिए
शिलारूपी हृदय के
मनोभाव पुष्पों से।
.
.
अब
.
निष्क्रिय सा है मन
असमर्थ है साधने को
निरूपण करने को
स्वयं की दशा के भेद का
कि तुमने
ऊर्जा दी तेजस सी
या
निर्बल किया
लाजवंती सा।


तारीख: 26.04.2024                                    अजय कुमार वर्मा









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