शुभ्र ज्योत्सना नव्यता, आकर्षक माधुर्य।
भरे सहज रोमांच तन, अनुपम जल चातुर्य॥
शीतल उत्श्रृंखल चपल, कभी तीव्र अरु मंद।
बालक सम क्रीड़ा करे, फव्वारा स्वच्छंद॥
मध्य दिवस जब धूप में, करती नृत्य फुहार।
स्वर्णिम आभा सम लगे, इसका तब श्रृंगार॥
पूर्ण चन्द्र की निशा में, बढ़े रूप मकरंद।
दूध घुली ज्यों चाँदनी, छलक रही सानंद॥
उषा काल रवि रश्मियाँ, जब करें मौन स्पर्श।
लगता शिशु सम सौम्य यह, भरता नूतन हर्ष॥
विमल धवल सुंदर मधुर, द्युतिमय उदक फुहार।
मंत्र मुग्ध होकर नयन, करते सरस विहार॥