(यह कविता हर मां को समर्पित है जो अपने बच्चों की चिंता में न जाने कितनी ही रातें आँखों ही आंखों में काट देती हैं !)
जब आई तुम्हारी गोद में मैं पहली बार
मेरा चेहरा निहारते, पूरी रात ममता से भीगी पलकें तुमने झपकाई तक न थीं ,
मां ,तुम सोई न थी !
हुआ बुखार मुझे जब 100 पार ,
रात के हर पहर, माथे पर पट्टियां रख चिंता से रात का हर पहर, बेचैन,जागती आँखों से काटती,
मां, तुम सोई न थी !
हर सुबह सवेरे स्कूल पहुंचाने को ,
सबसे पहले जगकर मुझे समय से
तैयार करने की चिंता में रातभर
अलार्म बजने का इंतजार करती
मां, तुम सोई न थीं !
मेरी विदा वाली रात बिखरती -टूटती ,
मंडप में मेरे सामने बैठी , मुझसे नज़रें चुराती , दुनियादारी की हर रस्म निभाती
मां, तुम सोई न थीं !
न जाने तुमसे दूर किस हाल में रहती हूं मैं ,
यह सोचकर आज भी मेरी चिंता में व्याकुल
न जाने कितनी ही अनगिनत रातों से
मैं जानती हूं कि
मां , तुम सोई न थीं !