मन का उपवन

तुम आए तो
मन का उपवन
महक गया।

उड़ने लगीं
तितलियाँ सुख की, 
खिले कमल
पाकर तुम्हें
थिरकता रहता
मन चंचल

प्रेम-गंध पा 
मुग्ध भ्रमर - मन 
बहक गया।

कुछ खुशबू,
कुछ रंग प्यार के, 
गये बरस 
सारा जीवन 
मधुमय होकर 
हुआ सरस 

सुर्ख गुलाब 
खिला चेहरे पर 
दहक गया


तारीख: 21.03.2024                                    त्रिलोक सिंह ठकुरेला









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