नींद की कच्ची पक्की सड़कों पर...
करवटों की आड़ी तिरछी पगडंडियों पर...
चांद तारों के संग बहुत लंबा सफर
तय करते है ये ख़्वाब...
और भोर होते ही...
थम जाते है किसी मोड़ पर
सुस्ताने के लिए...
फिर साथ उसके हक़ीक़त भी
निकल जाती है...
दिन भर के सफर पे...
फिर उन्ही जानी पहचानी
पथरीली सड़को पर...
तो कभी उबड़ खाबड़
आड़ी तिरछी पगडंडियों पर...
मीलों चलने के बाद
थक कर चकनाचूर हो कर
रात होते ही नींद में कंही खो जाती है
और अक्सर गलबहियां कर
ख्वाबो से हकीकत भी सो जाती है
झिलमिलातें आसमां तले
चांदनी रात की आगोश में
पलते है मासूम ख़्वाब...
और सुबह होते ही
सूरज की रोशनी में
गर्म थपेड़ों के बीच
हकीकत जवां होती है